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कब वो संगदिल बन गया
जाने कहाँ ,कब मिला और कब वो संगदिल बन गया दफन थे हर गम जो , अब राज़-ए-दिल बन गया ज़माने ने खुदगर्जी का कुछ ऐसा सिला ...
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जाने कहाँ ,कब मिला और कब वो संगदिल बन गया दफन थे हर गम जो , अब राज़-ए-दिल बन गया ज़माने ने खुदगर्जी का कुछ ऐसा सिला ...
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जब भी कलम उदास था इक पन्ना थमा दिया दो जहाँ के उस खुदा ने क्या क्या थमा दिया कलम स्याही में डूबा कर ज़ज्बा-ऐ-सुखन दिया सुख...
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चाहिये दोस्तों अब कितने जवाब , साँस लेने का होता नहीं है हिसाब ! देख कर आपकी नज़र की दुआ , भूल जायें जहाँ भर के हम गुलाब जाते जाते था कह...
ाउर आजकल लोग शायद ये सारे मतलव भूल गये हैं। बहुत अच्छी रचना। बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रेममय कविता !
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