Saturday, June 30, 2012

तुम फिर कब ये बोलोगे


तुम  फिर  कब  ये   बोलोगे  की  मैं  ज़रा  ज़रा  बोलूं ,
कि  बहुत  देर  हुई  जागे  ,थोडा  मैं  भी  सो  लूं 

वो  रूठना  का  दौर  ,वो  मनाने  की  ज़द्दोज़हत 
वो  तेरा   देखना , तेरे  वास्ते   संदूक   जब  खोलूं 

वो  तेरी  मासूमियत  ,वो  सादगी ,आवाज़  का  जादू 
जी  चाहता   था  तेरे  सामने  जी  भर   के  रो  लूं 

अब  मेरे  दरीचे  के  सामने  इक  दरख़्त   खड़ा  रहे 
झूला  जब  कभी टंगे ,  मैं  बीते  पन्नो  को  टटोलूं   !

मेरे  दश्त   में  तेरी  पुरवाई  की  महक  अब  भी  बसे 
मैं  तेरी  याद  से  हर्फों  की  अमराई   में  रस   घोलूँ  !!

कभी  तेरे  ख्यालों  में  कभी  टेढ़े  सवालों  में 
घड़ी  घड़ी  डगर  डगर  मन  थाम  के  डोलूँ  !!

Sunday, June 24, 2012

नील आँखें खुद बा खुद इक नज़्म कह देंगी तुम्हे , बिना लिखे बिना पढ़े


तुम  पूछते  हो  की  मैंने  क्या  लिखा  ,तो  कभी  हर्फों  को  भूल   कर  हमें  देखो  
तुम  सोचते  हो  की  मैंने  क्यूँ  लिखा  ,तो  मेरी   भी   बहुत  हैं  उलझने  देखो  !!


क्यूँ  मैंने  दर्द  में  भी  ख़ुशी  लिखी  ,क्यूँ  वही  शम्मा -ए -महफ़िल  लिखी 
तो  आकर  मेरे  अजीजों , मेरे  जान - ओ - जिगर  के  पयामो  के  सिलसिले  देखो  !!

हुज़ूर  कुछ  पल  की   है  जिंदगानी ,हर  मोड़  पे  है  उस  रब  की  ही  मेहेरबानी 
तुम  देख  लो  मेरी  रोशनाई  का  सादापन  ,तुम  मत  महज़  कुछ  पन्ने  देखो  !!

आज  बाग़ -ऐ -बुलबुल  में  कई  किलकारियाँ  ,सावन  के  झूले  ,शोखियाँ  हैं 
मगर  दूर  कहीं  बागवाँ  बंज़र  सी   ज़मीं  पे  बो  रहा  है  फसले  देखो  !!

नील  आँखें   खुद  बा  खुद  इक  नज़्म   कह  देंगी  तुम्हे , बिना  लिखे  बिना  पढ़े ,
वो  लड़  रही  हैं  तीरगी  से  खुद  बा  खुद  कितने  ही  मुकदमे  देखो  !!

Saturday, June 16, 2012

तश्वीर मैं बनाऊंगा तू करना ये इनायत

मुस्कुराता हुआ चेहरा ,गम से दूर कर दे 
ये ज़िन्दगी जब भी बहुत मजबूर कर दे 

हर वक़्त मौकतल में ही जैसे खड़ा मिला 
मेरी दास्ताँ न दश्त में कसूर कर दे 

मेरे मौला मेरे दामन में ज़रा ज़रा देना
कब माँग थी मेरी तू भरपूर कर दे

तश्वीर मैं बनाऊंगा तू करना ये इनायत
अपनी नज़र का इसमें थोडा नूर कर दे

नील सागर से न मांगे मोतियों की भीख
उसके आँख में वफ़ा का गुरूर कर दे

कब वो संगदिल बन गया

जाने  कहाँ  ,कब  मिला और कब वो  संगदिल बन गया  दफन  थे  हर  गम जो  , अब  राज़-ए-दिल  बन  गया  ज़माने  ने  खुदगर्जी  का  कुछ  ऐसा  सिला ...