तुम पूछते हो की मैंने क्या लिखा ,तो कभी हर्फों को भूल कर हमें देखो
तुम सोचते हो की मैंने क्यूँ लिखा ,तो मेरी भी बहुत हैं उलझने देखो !!
क्यूँ मैंने दर्द में भी ख़ुशी लिखी ,क्यूँ वही शम्मा -ए -महफ़िल लिखी
तो आकर मेरे अजीजों , मेरे जान - ओ - जिगर के पयामो के सिलसिले देखो !!
हुज़ूर कुछ पल की है जिंदगानी ,हर मोड़ पे है उस रब की ही मेहेरबानी
तुम देख लो मेरी रोशनाई का सादापन ,तुम मत महज़ कुछ पन्ने देखो !!
आज बाग़ -ऐ -बुलबुल में कई किलकारियाँ ,सावन के झूले ,शोखियाँ हैं
मगर दूर कहीं बागवाँ बंज़र सी ज़मीं पे बो रहा है फसले देखो !!
नील आँखें खुद बा खुद इक नज़्म कह देंगी तुम्हे , बिना लिखे बिना पढ़े ,
वो लड़ रही हैं तीरगी से खुद बा खुद कितने ही मुकदमे देखो !!
वाह ॥बहुत खूब
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति, काश और पढ़ने को मिले..
ReplyDeleteतुम पूछते हो की मैंने क्या लिखा ,तो कभी हर्फों को भूल कर हमें देखो
ReplyDeleteतुम सोचते हो की मैंने क्यूँ लिखा ,तो मेरी भी बहुत हैं उलझने देखो !!
गजब
aadarniya sangeeta ji,praveen ji,rashmi ji aapke sneh ka bahut aabhaari hoon
ReplyDeleteaccha likhne ka prayatn karta rahunga sada
saadar