Sunday, November 25, 2012

कोई मुझको भी नाराज़ करे

मेरी बातों पे ऐतराज़ करे 
कोई मुझको भी नाराज़ करे 

आ के इस दश्त की खामोशी में 
कोई थोडा सा आवाज़ करे 


कल की सुबह ,न जाने कैसी हो
जो भी करना है बस आज करे

बात रखने से पहले शायर
ये भी लाजिम है कि लिहाज़ करे

कोई शहरों का यहाँ मालिक है
कोई बस दिल पे यहाँ राज़ करे

शाम ढल जाए न मेरे यारों
कोई उसका तो अब इलाज़ करे

नील आँखों से सर-ए-महफ़िल अब
इल्तिजा कैसे बन्दा नवाज़ करे

Tuesday, November 20, 2012

साँसों का अफसाना

कोई भी नज़राना दे दे ,
राही को  एक ठिकाना दे दे 

या तो मरहम कर दे आ कर 
या कोई दर्द पुराना दे दे 

मैं भी गाऊं तनहा तनहा 
साँसों का अफसाना दे दे 

मैं भी अब पैमाना भर लूँ 

काग़ज़ का मयखाना दे दे

इन्द्रधनुष सी रंगों वाला
बचपन का ज़माना दे दे

रुसवा कर के इक काफिर को
गलियों को दीवाना दे दे

मेरे हर्फों को थोड़ा सा
लहजा शायराना दे दे

आ मेरे टूटे तीरों को
यारा तल्ख़ निशाना दे दे

नील नज़र को खामोशी में
जीने का  कोई  बहाना दे दे

Saturday, November 3, 2012

मुझको अपने शहर ले चलो

मुझको अपने शहर ले चलो 
है दूर फिर भी मगर ले चलो

जिधर ज़िन्दगी है उधर ले चलो 
ज़रा ज़ल्द ए रहगुज़र ले चलो 

लिखता रहेगा वहाँ बैठ कर ,
उसे  काग़ज़ों के घर ले चलो  

कश्ती खुद ही चला लेंगे हम 
माँझी नहीं  तुम अगर ले चलो

कई रंग की है ये  ज़िन्दगी
कभी ग़म कभी खुश खबर ले चलो  

ए वक़्त ठहरो ,वो रूठे नहीं 
ज़रा सी छुपा  के नज़र ले चलो 

ले कर कलम ,काग़ज़ ,दवात 
आज तुम भी कोई हुनर ले चलो 

गुलशन को अपने सजाने को तुम 
मेरे नज़्म की ये शज़र ले चलो 

रख लो जहाँ भर के तुम आंकड़े 
है नील की ख्वाइश शिफर ले चलो 

कब वो संगदिल बन गया

जाने  कहाँ  ,कब  मिला और कब वो  संगदिल बन गया  दफन  थे  हर  गम जो  , अब  राज़-ए-दिल  बन  गया  ज़माने  ने  खुदगर्जी  का  कुछ  ऐसा  सिला ...