मेरी बातों पे ऐतराज़ करे
कोई मुझको भी नाराज़ करे
आ के इस दश्त की खामोशी में
कोई थोडा सा आवाज़ करे
कल की सुबह ,न जाने कैसी हो
जो भी करना है बस आज करे
बात रखने से पहले शायर
ये भी लाजिम है कि लिहाज़ करे
कोई शहरों का यहाँ मालिक है
कोई बस दिल पे यहाँ राज़ करे
शाम ढल जाए न मेरे यारों
कोई उसका तो अब इलाज़ करे
नील आँखों से सर-ए-महफ़िल अब
इल्तिजा कैसे बन्दा नवाज़ करे
कोई मुझको भी नाराज़ करे
आ के इस दश्त की खामोशी में
कोई थोडा सा आवाज़ करे
कल की सुबह ,न जाने कैसी हो
जो भी करना है बस आज करे
बात रखने से पहले शायर
ये भी लाजिम है कि लिहाज़ करे
कोई शहरों का यहाँ मालिक है
कोई बस दिल पे यहाँ राज़ करे
शाम ढल जाए न मेरे यारों
कोई उसका तो अब इलाज़ करे
नील आँखों से सर-ए-महफ़िल अब
इल्तिजा कैसे बन्दा नवाज़ करे