जाने कहाँ ,कब मिला और कब वो संगदिल बन गया
दफन थे हर गम जो , अब राज़-ए-दिल बन गया
ज़माने ने खुदगर्जी का कुछ ऐसा सिला दिया उसे
कि वो बेगर्ज़ आशिक , खुद का , बिस्मिल बन गया
इक बंजारिन से उसने कुछ ऐसे दिल था लगा लिया
गोया कोई मासूम खुद का ही इक कातिल बन गया
नज़र -ए -इनायत की कोई ख्वाइश नहीं थी उसे
मिलती रहे उनको खुशी बस यही हासिल बन गया
बेपनाह मुहब्बत में कुछ ऐसे गुनाह हो गए "नील"
की कब कोई गैर आकर उनके काबिल बन गया
यूँ तो उनकी चाहत में इतने हसीं नगमे कहे
मगर फिर भी दीवाना उसका , इक जाहिल बन गया
सुन्दर अहसास
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना..सुन्दर भाव..
ReplyDeleteवाह बहुत भावुक अंदाज में लिखी गजल
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई
आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों
धन्यवाद वंदना जी ,प्रवीण जी ,ज्योति जी , बहुत आभार आपका
ReplyDeleteutan_**
ReplyDeletelive173 視訊美女-免費進入裸聊室
ReplyDeletelive173視訊影音live秀-免費夫妻視頻真人秀
live173影音視訊live秀-免費進入主播裸聊室
live173影音live秀-免費視訊-裸聊直播間免費
live173影音live秀-免費同城交友裸聊室
showlive影音視訊聊天網-美女主播免費祼聊聊天室
showlive視訊聊天網-真人在線裸聊網
live 173免費視訊-不收費的同城聊天室
173免費視訊聊天-免費裸聊聊天室
173免費視訊美女-最新裸聊直播間