कैसा है ये आगमन
ख़ामोशी में डूबा आवरण
करता है भ्रमण किस खोज में तू
व्यर्थ होगा तेरा हर विचरण
ख़ामोशी अन्दर न हो
झील हो समुंदर न हो
कोई पत्थर मारे तो
उसको तरंग के दर्शन तो हों
उसे पता चले धीरता का अर्थ
अति चंचलता है व्यर्थ
जो ले परीक्षा झील
के खामोशी की
उसके दृढ मदहोशी की
तो उसका प्रतिउत्तर हो
जल तरंगो सा
एक योगी के तपोबल सा
जो कर दे सब का मन परिवर्तन
दे दे उसको सच्चा चिंतन
वरना समुंदर में तो कोलाहल है
तेरा प्रयास विफल होगा
कभी पत्थर फेंक के देख ले मन
उसका उत्तर लहरें देंगी
तुझे न मिलेगी अंतर दृष्टि
न पूरी होगी अभिष्टि
व्यर्थ होगा तेरा हर प्रयत्न
व्यर्थ होगा तेरा हर विचरण
dil ke thahre paani me kankad phenkti rachna
ReplyDeleteधीरता को और धीरज देती रचना ....बहुत भाव प्रवण...आपका आभार
ReplyDeleteबेहद सुन्दर और सार्थक रचना नीलांश जी ।
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