दिल-ओ-जान से आज ख़त लिख रहा हूँ !!
ढूँढा है उनकी मासूमियत को शहर में
उसी शहर की शराफत लिख रहा हूँ !!
नसीम-ए-शाम भी है, दरिया भी है
उनकी करम-ओ-रहमत लिख रहा हूँ !!
गुल गुलशन के उनकी याद दिला देते हैं
उनकी ही दुआ -ओ-मुरब्बत लिख रहा हूँ !!
बरसार-ए-आम हो जाए ये मोहब्बत
आज अपनी वफ़ा -ओ-ग़ैरत लिख रहा हूँ !!
ढूँढा है उनकी मासूमियत को शहर में
उसी शहर की शराफत लिख रहा हूँ !!
नसीम-ए-शाम भी है, दरिया भी है
उनकी करम-ओ-रहमत लिख रहा हूँ !!
गुल गुलशन के उनकी याद दिला देते हैं
उनकी ही दुआ -ओ-मुरब्बत लिख रहा हूँ !!
बरसार-ए-आम हो जाए ये मोहब्बत
आज अपनी वफ़ा -ओ-ग़ैरत लिख रहा हूँ !!
bahut badhiyaa hamesha ki tarah .... kuch vyast hun to ise dhyaan mein rakhna hai
ReplyDeleteचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 28 - 06 - 2011
ReplyDeleteको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
साप्ताहिक काव्य मंच-- 52 ..चर्चा मंच
कृपया टिप्पणी बॉक्स से वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...
वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो करें ..सेव करें ..बस हो गया .
बहुत खूब, सुन्दर रचना।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर गज़ल्।
ReplyDeleteहर एक पंक्ति बेमिसाल ...अनुपम प्रस्तुति ।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना..
ReplyDeletebahut khoobsurati se likha hai ye khat
ReplyDeleteaap bhi aaiye
Naaz
अच्छी अभिव्यक्ति .....
ReplyDeleteसुन्दर रचना.
ReplyDeleteअति सुन्दर रचना....
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत रचना! सराहनीय प्रस्तुती!
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