Tuesday, May 10, 2011
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कब वो संगदिल बन गया
जाने कहाँ ,कब मिला और कब वो संगदिल बन गया दफन थे हर गम जो , अब राज़-ए-दिल बन गया ज़माने ने खुदगर्जी का कुछ ऐसा सिला ...
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जाने कहाँ ,कब मिला और कब वो संगदिल बन गया दफन थे हर गम जो , अब राज़-ए-दिल बन गया ज़माने ने खुदगर्जी का कुछ ऐसा सिला ...
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उनके दिए कुछ वक़्त लिख रहा हूँ दो पल में ही जन्नत लिख रहा हूँ !! ये किसको फिकर है कि कल हो न हो दिल-ओ-जान से आज ख़त लिख रहा ...
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जब भी कलम उदास था इक पन्ना थमा दिया दो जहाँ के उस खुदा ने क्या क्या थमा दिया कलम स्याही में डूबा कर ज़ज्बा-ऐ-सुखन दिया सुख...
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