जब भी कलम उदास था इक पन्ना थमा दिया
दो जहाँ के उस खुदा ने क्या क्या थमा दिया
कलम स्याही में डूबा कर ज़ज्बा-ऐ-सुखन दिया
सुखनवरी का एक रौशन सिलसिला थमा दिया
बैठे थे राही मोड़ पे जाने किस ख्यालो-ओ-ख्वाब में
उन गिलामंदों को भी एक रास्ता थमा दिया
हर मरासिम ज़िन्दगी के देखते थे आ रहे ,
और किताबों से भी वाजिब वास्ता थमा दिया
हम ढूंढते थे पयाम किस खुदा का अब तलक ,
और डाकिये ने ख़त हमें किस नाम का थमा दिया
थे अकेले ही चले नील आसमां ज़मीं के बीच
नज़्म में रिश्ते बना के काफिला थमा दिया
..
सुखन:speech ,words
मरासिम:relation