Friday, December 7, 2012

कहाँ ठहरे


शम्म-ए -महफ़िल औ' ख़ुशी कहाँ ठहरे 
उम्र भर तक भला, ज़िन्दगी कहाँ ठहरे 

बिना उस रब की वो मर्ज़ी कहाँ ठहरे 
कल तो दूर है लेकिन ,अभी कहाँ ठहरे 

चराग ही तो हैं ,कुछ देर में बुझ जायेंगे 
सहन में देर तक ये रौशनी कहाँ ठहरे 

धडकनों पर कोई काबू जब नहीं होता 
पता नहीं अब कि दिल्लगी कहाँ ठहरे 

शेख जी तुमने बना लिए हैं खुदा के घर 
बता दो इतना कि आदमी कहाँ ठहरे 

ज़रुरत जब समंदर हों,तो बता भी दें 
कि गुरबत्त में ये तश्नगी कहाँ ठहरे 

उन्हें रहने दो लहरों में,अभी रोको नहीं 
सलामत साहिलों पर कश्ती कहाँ ठहरे 

जिसे साँसों में हर पल सरगम सुनाई दे 
वो भला अब छोड़ के मौसिकी कहाँ ठहरे 

तुम्हारे ज़हन-ओ-दिल का मिला तोहफा 
वगरना कमज़र्फ सी ये शायरी कहाँ ठहरे 

चंद पन्ने भर नहीं ,इक ज़िन्दगी है "नील" 
भला वो भूल के अपनी डायरी कहाँ ठहरे 
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सहन :courtyard ,आँगन 
मौसिकी :music

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