Wednesday, December 19, 2012

न जाने किस किस बात पर हंगामा हो गया

न जाने किस किस बात पर हंगामा हो गया 
क्यूँ बिखरे हुए हालात पर हंगामा हो गया 

होता है हर सिम्त ,कहाँ है सुकून मयस्सर 
कभी कज़ा तो कभी हयात पर हंगामा हो गया 

वो सूरज जलता है हर दिन करने को उजाला 
क्यूँ उसके इस सबात पर हंगामा हो गया 

खंजर छूरी तलवार पे होता तो बात थी 
क्यूँ काग़ज़ कलम दवात पर हंगामा हो गया

तंग हाल था शहर तो सब थे खामोश मगर
इक अच्छी सी शुरुआत पर हंगामा हो गया

दैर -ओ-हरम  में मिला नहीं हुनर बंदगी का
पर वहाँ हमारी ज़ात पर हंगामा हो गया 


हम तो हार चले आये थे कब की अपनी बाज़ी
क्यूँ हारी हुई बिसात पर हंगामा हो गया

क्यूँ दीवारें कायम हैं हर कूचा- ए- दिल में
कुछ सीधे से सवालात पर हंगामा हो गया

क्या मस्जिद ही में रहे अली और मंदिर में राम
इन उड़ते हुए ज़ज्बात पर हंगामा हो गया

तूफानों से संभल के कश्ती पहुंचा अपने साहिल
फिर क्यूँ उसकी औकात पर हंगामा हो गया

कब क़त्ल हुआ कब दफ़्न हुआ मालूम नहीं "नील"
न जाने किस वारदात पर हंगामा हो गया

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कज़ा :death
हयात:life
सबात:stability,constancy
दैर -ओ-हरम:place of worship

Friday, December 7, 2012

कहाँ ठहरे


शम्म-ए -महफ़िल औ' ख़ुशी कहाँ ठहरे 
उम्र भर तक भला, ज़िन्दगी कहाँ ठहरे 

बिना उस रब की वो मर्ज़ी कहाँ ठहरे 
कल तो दूर है लेकिन ,अभी कहाँ ठहरे 

चराग ही तो हैं ,कुछ देर में बुझ जायेंगे 
सहन में देर तक ये रौशनी कहाँ ठहरे 

धडकनों पर कोई काबू जब नहीं होता 
पता नहीं अब कि दिल्लगी कहाँ ठहरे 

शेख जी तुमने बना लिए हैं खुदा के घर 
बता दो इतना कि आदमी कहाँ ठहरे 

ज़रुरत जब समंदर हों,तो बता भी दें 
कि गुरबत्त में ये तश्नगी कहाँ ठहरे 

उन्हें रहने दो लहरों में,अभी रोको नहीं 
सलामत साहिलों पर कश्ती कहाँ ठहरे 

जिसे साँसों में हर पल सरगम सुनाई दे 
वो भला अब छोड़ के मौसिकी कहाँ ठहरे 

तुम्हारे ज़हन-ओ-दिल का मिला तोहफा 
वगरना कमज़र्फ सी ये शायरी कहाँ ठहरे 

चंद पन्ने भर नहीं ,इक ज़िन्दगी है "नील" 
भला वो भूल के अपनी डायरी कहाँ ठहरे 
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सहन :courtyard ,आँगन 
मौसिकी :music

कब वो संगदिल बन गया

जाने  कहाँ  ,कब  मिला और कब वो  संगदिल बन गया  दफन  थे  हर  गम जो  , अब  राज़-ए-दिल  बन  गया  ज़माने  ने  खुदगर्जी  का  कुछ  ऐसा  सिला ...