Tuesday, November 20, 2012

साँसों का अफसाना

कोई भी नज़राना दे दे ,
राही को  एक ठिकाना दे दे 

या तो मरहम कर दे आ कर 
या कोई दर्द पुराना दे दे 

मैं भी गाऊं तनहा तनहा 
साँसों का अफसाना दे दे 

मैं भी अब पैमाना भर लूँ 

काग़ज़ का मयखाना दे दे

इन्द्रधनुष सी रंगों वाला
बचपन का ज़माना दे दे

रुसवा कर के इक काफिर को
गलियों को दीवाना दे दे

मेरे हर्फों को थोड़ा सा
लहजा शायराना दे दे

आ मेरे टूटे तीरों को
यारा तल्ख़ निशाना दे दे

नील नज़र को खामोशी में
जीने का  कोई  बहाना दे दे

3 comments:

कब वो संगदिल बन गया

जाने  कहाँ  ,कब  मिला और कब वो  संगदिल बन गया  दफन  थे  हर  गम जो  , अब  राज़-ए-दिल  बन  गया  ज़माने  ने  खुदगर्जी  का  कुछ  ऐसा  सिला ...