जब भी कलम उदास था इक पन्ना थमा दिया
दो जहाँ के उस खुदा ने क्या क्या थमा दिया
कलम स्याही में डूबा कर ज़ज्बा-ऐ-सुखन दिया
सुखनवरी का एक रौशन सिलसिला थमा दिया
बैठे थे राही मोड़ पे जाने किस ख्यालो-ओ-ख्वाब में
उन गिलामंदों को भी एक रास्ता थमा दिया
हर मरासिम ज़िन्दगी के देखते थे आ रहे ,
और किताबों से भी वाजिब वास्ता थमा दिया
हम ढूंढते थे पयाम किस खुदा का अब तलक ,
और डाकिये ने ख़त हमें किस नाम का थमा दिया
थे अकेले ही चले नील आसमां ज़मीं के बीच
नज़्म में रिश्ते बना के काफिला थमा दिया
..
सुखन:speech ,words
मरासिम:relation
बहुत बढ़िया ग़ज़ल
ReplyDeleteवाह ... बहुत खूब।
ReplyDeleteपोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत खूब
ReplyDeleteबेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
aapka bahut dhanyavaad sangeeta ji
ReplyDeleteaapne meri rachna ko maan diya
sada ji,vandana ji bahut aabhaari hoon
madan ji bahut shukriya aapke protsaahan ka
saadar
वाह! बेहतरीन..
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