Sunday, October 14, 2012

हम ढूंढते थे पयाम किस खुदा का अब तलक


जब भी कलम उदास था इक पन्ना  थमा दिया 
दो जहाँ के उस खुदा ने  क्या क्या थमा दिया 

कलम स्याही में डूबा कर ज़ज्बा-ऐ-सुखन दिया  
सुखनवरी का एक रौशन सिलसिला थमा दिया 

बैठे थे राही मोड़ पे जाने किस ख्यालो-ओ-ख्वाब में
उन गिलामंदों को भी एक रास्ता थमा दिया 

हर मरासिम ज़िन्दगी के  देखते थे आ रहे ,
और किताबों से  भी वाजिब वास्ता थमा दिया 

हम ढूंढते थे पयाम किस खुदा का  अब तलक ,
और डाकिये ने ख़त हमें किस नाम का थमा दिया 

थे अकेले   ही  चले  नील  आसमां   ज़मीं    के बीच   
नज़्म    में रिश्ते    बना   के काफिला    थमा दिया  
..
सुखन:speech ,words
मरासिम:relation

5 comments:

  1. बहुत बढ़िया ग़ज़ल

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  2. वाह ... बहुत खूब।

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  3. पोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत खूब
    बेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.

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  4. aapka bahut dhanyavaad sangeeta ji
    aapne meri rachna ko maan diya


    sada ji,vandana ji bahut aabhaari hoon
    madan ji bahut shukriya aapke protsaahan ka

    saadar

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