Sunday, October 14, 2012

हम ढूंढते थे पयाम किस खुदा का अब तलक


जब भी कलम उदास था इक पन्ना  थमा दिया 
दो जहाँ के उस खुदा ने  क्या क्या थमा दिया 

कलम स्याही में डूबा कर ज़ज्बा-ऐ-सुखन दिया  
सुखनवरी का एक रौशन सिलसिला थमा दिया 

बैठे थे राही मोड़ पे जाने किस ख्यालो-ओ-ख्वाब में
उन गिलामंदों को भी एक रास्ता थमा दिया 

हर मरासिम ज़िन्दगी के  देखते थे आ रहे ,
और किताबों से  भी वाजिब वास्ता थमा दिया 

हम ढूंढते थे पयाम किस खुदा का  अब तलक ,
और डाकिये ने ख़त हमें किस नाम का थमा दिया 

थे अकेले   ही  चले  नील  आसमां   ज़मीं    के बीच   
नज़्म    में रिश्ते    बना   के काफिला    थमा दिया  
..
सुखन:speech ,words
मरासिम:relation

Sunday, October 7, 2012

लीजिये बावफा लिख दिया इक़ किताब

चाहिये दोस्तों अब कितने  जवाब ,
साँस लेने का होता नहीं है हिसाब !

देख कर आपकी नज़र की दुआ ,
भूल जायें जहाँ भर के हम गुलाब 

जाते जाते  था कहकशां का  सबब,

आते आते तो बस सिफ़र  था जनाब! 

जाग कर ख्वाब का सामना कीजिये,
नींद की ज्यादती हो न जाये खराब

आईये कि ये शहर पुकारा करे ,
होंगे अपने गली के भले ही नवाब

सुन साकी कि हमको दो हर्फ़ बहुत,
क्या पैमाना ख़ास ,क्या महंगी शराब

हर घड़ी छोड़ देता है वाजिब सवाल,
ए खुदा! तू भी कितना है लाजवाब

दीजिये नील स्याही काग़ज़ कलम
लीजिये बावफा लिख दिया इक़ किताब

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बावफा : loyal ,कृतज्ञ 
कहकशां : universe
सिफ़र : शुन्य ,zero

Tuesday, October 2, 2012

"मृगतृष्णा "


अपार हर्ष के साथ सूचित कर रहा हूँ की मेरी पुस्तकमृगतृष्णा प्राकशित हुई है
इसमें १० कवियों की अनमोल रचनाएं हैं
आप इसे यहाँ से प्राप्त कर सकते हैं
साभार 


इन्फीबिम से प्राप्त करें मृगतृष्णा
फ्लीप्कार्ट से प्राप्त करें मृगतृष्णा


कब वो संगदिल बन गया

जाने  कहाँ  ,कब  मिला और कब वो  संगदिल बन गया  दफन  थे  हर  गम जो  , अब  राज़-ए-दिल  बन  गया  ज़माने  ने  खुदगर्जी  का  कुछ  ऐसा  सिला ...