तब रोशनाई आ गयी थी बादल की तरह ,
जब जब वीरां पन्ना लगा मौकतल की तरह
कोई खिलता है मेरे सर में कमल की तरह ,
चले जाता है फिर किसी ग़ज़ल की तरह
किधर जाए वो मुसाफिर ,आशियाँ ढूंढें ,
जब दिखने लगे हर राह चम्बल की तरह
होती है उसकी खुशबू से ही चरागारी ,
जो रहता है विषों के बीच संदल की तरह
जब कभी परीशां सी हो जाती है नींदें ,
तब आते हैं ख्वाब किसी आँचल की तरह
वो आसमां और ज़मीं दूर हैं मगर फिर भी ,
साथ हैं फलक पे सदा अज़ल की तरह
कहाँ होती है सोने के तमगो से तसल्ली नील
वो आसमां और ज़मीं दूर हैं मगर फिर भी ,
साथ हैं फलक पे सदा अज़ल की तरह
कहाँ होती है सोने के तमगो से तसल्ली नील
नहीं है बात गेहूं की पकी फसल की तरह
***
सर : जलाशय
संदल : चन्दन
मौकतल : execution place, कत्लगाह
परीशां : in trouble,anxious,परेशानी में
अज़ल : eternity,without any beginning,अनादी
फलक :क्षितिज ,horizon
मौकतल : execution place, कत्लगाह
परीशां : in trouble,anxious,परेशानी में
अज़ल : eternity,without any beginning,अनादी
फलक :क्षितिज ,horizon