Saturday, September 29, 2012

चले जाता है फिर किसी ग़ज़ल की तरह



तब  रोशनाई  आ   गयी  थी   बादल   की  तरह ,
जब  जब  वीरां  पन्ना  लगा  मौकतल  की  तरह 

कोई खिलता है मेरे सर में कमल की तरह ,
चले जाता है फिर किसी ग़ज़ल की तरह


किधर  जाए  वो  मुसाफिर   ,आशियाँ  ढूंढें ,
जब  दिखने  लगे  हर  राह  चम्बल  की  तरह  

होती  है  उसकी  खुशबू  से  ही  चरागारी ,
जो  रहता  है  विषों  के  बीच  संदल  की  तरह 

जब  कभी  परीशां  सी  हो  जाती  है  नींदें  ,
तब  आते  हैं  ख्वाब   किसी  आँचल   की  तरह

वो  आसमां और   ज़मीं  दूर  हैं   मगर  फिर भी ,
साथ हैं  फलक  पे  सदा   अज़ल  की  तरह

कहाँ होती है सोने के तमगो से तसल्ली नील 
नहीं है बात गेहूं की पकी  फसल की तरह 

***
सर : जलाशय 
संदल : चन्दन
मौकतल : execution place, कत्लगाह
परीशां : in trouble,anxious,परेशानी  में
अज़ल : eternity,without any beginning,अनादी 
फलक  :क्षितिज  ,horizon

कब वो संगदिल बन गया

जाने  कहाँ  ,कब  मिला और कब वो  संगदिल बन गया  दफन  थे  हर  गम जो  , अब  राज़-ए-दिल  बन  गया  ज़माने  ने  खुदगर्जी  का  कुछ  ऐसा  सिला ...