तुम फिर कब ये बोलोगे की मैं ज़रा ज़रा बोलूं ,
कि बहुत देर हुई जागे ,थोडा मैं भी सो लूं
वो रूठना का दौर ,वो मनाने की ज़द्दोज़हत
वो तेरा देखना , तेरे वास्ते संदूक जब खोलूं
वो तेरी मासूमियत ,वो सादगी ,आवाज़ का जादू
जी चाहता था तेरे सामने जी भर के रो लूं
अब मेरे दरीचे के सामने इक दरख़्त खड़ा रहे
झूला जब कभी टंगे , मैं बीते पन्नो को टटोलूं !
मेरे दश्त में तेरी पुरवाई की महक अब भी बसे
मैं तेरी याद से हर्फों की अमराई में रस घोलूँ !!
कभी तेरे ख्यालों में कभी टेढ़े सवालों में
घड़ी घड़ी डगर डगर मन थाम के डोलूँ !!
बहुत खूब..
ReplyDeleteवाह ...बेहतरीन
ReplyDeletepraveen ji ,sada ji ,aapke sneh ka bahut aabhaari hoon
ReplyDeletesaadar