Thursday, June 23, 2011

ख़त लिख रहा हूँ !!


उनके  दिए कुछ  वक़्त लिख रहा हूँ 
दो   पल    में ही  जन्नत लिख रहा हूँ  !!


ये किसको फिकर है कि कल हो न हो 
दिल-ओ-जान से आज ख़त लिख रहा हूँ !!


ढूँढा है उनकी  मासूमियत को शहर में 
उसी शहर की शराफत लिख रहा हूँ !!


नसीम-ए-शाम भी है, दरिया भी है 
उनकी  करम-ओ-रहमत लिख रहा हूँ !!


गुल गुलशन के उनकी याद दिला देते हैं 
उनकी  ही दुआ -ओ-मुरब्बत लिख रहा हूँ !!


बरसार-ए-आम हो जाए ये मोहब्बत 
आज अपनी  वफ़ा -ओ-ग़ैरत लिख रहा हूँ !!


































कब वो संगदिल बन गया

जाने  कहाँ  ,कब  मिला और कब वो  संगदिल बन गया  दफन  थे  हर  गम जो  , अब  राज़-ए-दिल  बन  गया  ज़माने  ने  खुदगर्जी  का  कुछ  ऐसा  सिला ...