Tuesday, May 31, 2011

धीरता का अर्थ

कैसा है ये आगमन 
ख़ामोशी में डूबा आवरण 
करता है भ्रमण किस खोज में तू 
व्यर्थ होगा तेरा हर विचरण 

ख़ामोशी अन्दर न हो 
झील हो समुंदर न हो 
कोई पत्थर मारे तो 
उसको तरंग के दर्शन तो हों
उसे पता चले धीरता का अर्थ 
अति चंचलता है व्यर्थ 

जो ले परीक्षा झील
के खामोशी की 
उसके दृढ मदहोशी की 

तो उसका प्रतिउत्तर हो 
जल तरंगो सा 
एक योगी के तपोबल सा 
जो कर दे सब का मन परिवर्तन 
दे दे उसको सच्चा चिंतन 

वरना समुंदर में तो कोलाहल है 
तेरा प्रयास विफल होगा 
कभी पत्थर फेंक के देख ले मन 
उसका उत्तर लहरें देंगी 

तुझे न मिलेगी अंतर दृष्टि 
न पूरी होगी अभिष्टि 
व्यर्थ होगा तेरा हर प्रयत्न 
व्यर्थ होगा तेरा हर विचरण 



Saturday, May 14, 2011

इंतज़ार में तेरे....

इंतज़ार में तेरे ,शब्द मोती से बन गए
ये है तेरी दुआ ........या उसकी मेहर है
कि तुझसे मिला ....ये उसका असर है
जानते है सब ............सबको खबर है
पर तू जान के भी .......क्यों बेखबर है
ये है तेरी दुआ ......या उसकी मेहर है 



इकरार में तेरे ......मौसम बदल गए 
पर तू  भोर  मेरा ........तू  दोपहर  है 
की हूँ आज तनहा....   तू हमसफ़र है 
एक झील था मैं.........तू एक लहर है 
सब मुझको देखें ......तू मेरी नज़र है 
ये है तेरी दुआ .....या उसकी मेहर है 

Tuesday, May 10, 2011

कलम !


कलम !

ठहरी ,
अर्थहीन स्याह में
लाती
ये मेरे मन के तरंगो की रवानी है !

हर पन्ने पर
ये चलती है ,
इसे मुझको राह दिखानी है ,
ये लिखती मेरी कहानी है!

Monday, May 2, 2011

प्रेम ही जीवन का ध्येय है



प्रेम दया है ..प्रेम कृपा है 

प्रेम दुआ है ...प्रेम दवा है

प्रेम से ही है सृष्टि सारी

प्रेम की ही जीत सदा है


प्रेम वीरता ...प्रेम धैर्य है

प्रेम दृढ़ता ... प्रेम शौर्य है

प्रेम ही भक्ति. ..प्रेम मोक्ष है

प्रेम ही जीवन का ध्येय है

Sunday, May 1, 2011

हर सपने कहाँ इन्द्रधनुषी होते हैं

शब्द अमृत से निकल जाएँ मन के सागर से
उसके लिए कोई हरि सा संचालक चाहिए 


तीव्र विष न छीने स्वच्छ चिंतन को 
उसके लिए कोई शिव सा धारक चाहिए 

हर मुंगे से मोती कहाँ मिलता है 
उसके लिए कोई माँ सा पालक चाहिए 

हर बालक कृष्ण कहाँ बनता है
उसके लिए सान्दिपिनी सा प्रशिक्षक चाहिए 



हर सपने कहाँ इन्द्रधनुषी होते हैं
सूरज और वर्षा दोनों का साथ चाहिए 




सूरज और वर्षा दोनों का साथ चाहिए 

कब वो संगदिल बन गया

जाने  कहाँ  ,कब  मिला और कब वो  संगदिल बन गया  दफन  थे  हर  गम जो  , अब  राज़-ए-दिल  बन  गया  ज़माने  ने  खुदगर्जी  का  कुछ  ऐसा  सिला ...